पत्ते यूँ ही नहीं गिरते,
पानी यूँ ही नहीं बहता,
यूँ ही ऋतुएँ भी नहीं बदलती,
सब कुछ इसलिये भी नहीं घटता
कि यही नीति है।
कुछ घटनायें घटती है संयोग से,
संयोग भी यूँ ही नहीं बनता।
कुछ भी नहीं होता
सिर्फ होने के लिए
हम वजह ढूंढ लेते है अक्सर
उन तमाम घटित घटनाओं के लिए
जो प्रेरणा होती है भविष्य की।
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तलाश जो थी उस चैतन्य तर्क की…
तर्कों की तरी पर होकर सवार बेहोशी कुछ ऐसी थी,
अभिज्ञ थपेड़ो ने होश दिया, बेतरतीब नीति दरिया में थी…
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Good poem shubham
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