“मैं कुछ नहीं जानता, मुझे बस मोटरसाइकिल चाहिए, मेरे कॉलेज के सभी दोस्तों के पास मोटरसाइकिल है।” रमेश तमतमाता हुआ घर से निकल गया।
“अब इतने पैसों का इंतजाम कहाँ से करेंगे आप, आपकों कम से कम उसे समझाना तो था।”
“नहीं शुशीला, अब थोड़ी सख्ती उसे हमसे दुर ले जायेगी, और मैं नहीं चाहता की विक्रम की तरह रमेश भी…।” अपने स्कूटर पर सवार होकर मास्टरजी भी निकल गए।
…
कॉलेज से लौटते वक़्त…
“यार शिवम चल ना बाइक देखते है।”
“पैसे कहाँ से लाएगा?”
“चल तो”
…
“भैया सेकंड हैण्ड बाइक है?”
“हाँ वो पीछे पल्सर रखी है चालीस हज़ार लगा देंगे और वो बगल का स्कूटर पन्द्रह हज़ार में।”
“रमेश, ऐसा ही स्कूटर तो अंकल के पास भी है ना!”
रमेश खामोश था।
यार शुभम, तुम तो रुला दोगे इतना अच्छा लिख कर।
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Humare parents kitna kuch se guzarte hai, hume choti choti khushi dene ke liye. Very beautiful..
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